यह खंडकाव्य केवल आगरा, बस्ती, गाजीपुर, बाराबंकी,उन्नाव जिलो के लिए निर्धारित किया गया है।(up बोर्ड class 10 इन exam 100%)
प्रथम-सर्ग में कवि ने महात्मा गांधी को युगपुरुष के
रूप में स्वीकार किया है तथा उनके चरित्र की महानता का वर्णन किया है। महात्मा गांधी भारत के ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के संकटों का निवारण करने के लिए उसी प्रकार अवतरित हुए जिस प्रकार राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, ईशा, मुहम्मद साहब तथा गुरु गोविन्द सिंह आदि भगवान के रूप
में अवतरित हुए। जिस प्रकार लिंकन ने अमेरिका का तथा नेपोलियन ने फ्रांस का उद्धार किया था उसी प्रकार गांधी जी ने भारतवर्ष को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलायी
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता श्री करमचन्द गांधी थे। महात्मा गांधी के जीवन पर अपनी माता के चरित्र की गहरी छाप थी। बचपन में ही सत्य हरिश्चन्द्र और श्रवण कुमार के आदर्श चरित्र से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए थे। गांधी जी को हरिजन तथा हिन्दुस्तानी दोनों से ही अगाध स्नेह था। वे आजीवन विभिन्न समस्याओं से जूझते रहे, उनके अवक् प्रयासों के फलस्वरूप भारत को आजादी प्राप्त हो सकी।
द्वितीय सर्ग
खण्डकाव्य की मूल कथा का प्रारम्भ द्वितीय सर्ग से ही होता है। एक बार गांधी जी ने स्वप्न में अपनी माता को देखा। उन्हें स्वप्न में देखकर गांधीजी को अपनी माता की समस्त शिक्षाये याद हो आयी। उनकी माता ने उन्हें समझाया था कि गिरते हुए को सहारा दो तथा देश के भूंखे व्यक्तियों को भोजन दो।माताजी की वाणी गांधीजी के हर्दय को स्वर्ण कर गयी। उन्होंने मन-ही-मन सत्य किया कि ये दोन-तीन दलिय जो बाहाना दले समान के नाम काट लेते। उसके मन में कुछ आदर्श विचार इस प्रकार उपाय हर-सभी भारतवासी को भान है। यदि देश का एक भी माता नगा का है तो मुझे मुग किस प्रकार वित्त मकता है? आपलं कोई उसी रिवर ने पेश किया है। इन दोनों ने उस पान के अति सहनति शट की है फिन इनके प्रति भेद-भाव को रखा जा सकता निम सति में पैदएर सत्यवान को जम गौतम का शिक्षा दे सकते है और शबरी को भगवान् राम स्वयं अपना प्रेम अर्पित कर सकते हैं तो फिर इन हरिजनों को पदय में अलग करन कैे सम्व हैं।
गांधीजी विचार करते हैं कि देश में व्यान-भाव की भावना को मिटाना ही होगा। गरीब और अमीर का भेद ईश्वर का बल्कि हमारा बनाया हुआ है। हरिजन केन्दिर में प्रवेश करने से यदि मन्दिर अपया हो जाता है तउस मन्दिर में भगवान का नारा बिल्कुल नहीं है। यही हेचकर जीजी ने अपने अেম में रहने के लिए हरिजनों को आमन्वित किया था। गांधीजी के इस कार्य की प्रतिक्रिया हुई। जनता ने आश्रम को बन्दा देने से मना कर दिया। आश्रम के प्रवन्यक मरानलाल के निराशाजनक शब्दों को सुनकर गांधीजी क्रोधित से उठे। उनके मन में अभी अयश में हुर अपन की स्मृति शेष थी। जहाँ काले-गारे, ऊँच-नीच स भेदभ्यान व्याप्त था। गांधीजी ने या कि, यदि जनता आम के लिए अन्य नहीं देती है तो में हरिजनों की बस्ती में ही रहतूंगा, पेड़ के नीचे सो लूँगा, किन्तु में आदमी आदमी में भेद नहीं कर सकता। मेरे जीते जी पृणा और देश नहीं चल सकता। पहले देश आजाद हो जाय फिर में हरिजन समस्या का श्री निवारण करू। गांधीजी के इस कदम से आधमवामियों में नवीन चेतना उत्पत्र हुई। वे गांधीजी के असाधारण गुणों से भी परिचित का एक बार गांधी ने स्वप्न में गपालकশ ते को देखा। गोपातकृमा गोते ने गांधीजी को स्वतन्त्रता के मार्ग पर अनवरत चलने की प्रेरणा दी। गोयले ने आशा प्रकट की कि गांधीजी ही भारतवर्ष के मुसित बनेंगे।
तृतीय सर्ग★
इस सर्ग में भारत की विपत्रता और अंग्रेजों के अत्याचारों का वर्णन किया गया है। भारतवासी अपमान का जीवन जी रहे थे। केवल उही त्येस नयी ये जो अंग्रेजों के चाटुशार थे। गांधीजी ने भारत की दुर्दशा को ठीक प्रकार से समझा। उन्होंने अंग्रेजों के प्रति पहते तो नमता की नीति अपनायी, किन्तु अंग्रेजों का इदय बदलता हुआ न देखकर उन्होंने उनके विरुद्ध 'सविनय सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। इसी समय विश्वयुद्ध छिड़ गया। गांधीजी को यह आशा थी कि विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने से उनके मन में भारतीयों के प्रति अधिक सहानुभूति पैदा हो जायेगी। अतः उन्होंने देशवासियों को अंग्रेजों की सहायता करने का आह्वान किया, परन्तु युद्ध में जीतने के बाद श्रीजों ने भारतीयों पर और अधिक अत्याचार किये। अंग्रेजों द्वारा बनाये गये काले कानून का गांधीजी ने विरोध किया। देश के महान् नेता-जवाहरलाल नेहरू, बालगंगाधर तिलक, महामना मदनमोहन मालवीय, जिना, सरदार पटेल आदि उनके साथ संघर्ष में कूद पड़े। इन्हीं दिनों जलियाँवाला बाग की अमानवीय घटना पटित हुई। अंप्रेजों ने निरपणाथ भारतीयों को बन्दूक की 1. गोली से भून डाला।
इस दर्दनाक घटना से गांधीजी का हृदय रोष एवं दुःख से भर गया। अब उन्होंने यह अच्छी तरह से समझ लिया कि भारत में अंग्रेज जाति अधिक दिनों तक नहीं रह सकती है।
चतुर्थ सर्ग (आन्दोलन सर्ग)
इस वर्ग में गांधीजी द्वारा चलाये गये विभिन्न आन्दोलनों का वर्णन किया गया है। अगस्त, 1920 ई० में गांधीजी ने असहयोग आन्दोता प्रारम्भ किया। जनता ने विदेशी सामान का बहिष्कार किया। अंग्रेजों द्वारा दी गयी उपाधियों को लौटा दिया तथा नौकरियों से त्याग-पत्र दे दिया। इस असहयोग आन्दोलन को देखकर अंग्रेजों को बड़ी निराशा हुई। गांधीजी ने 'साइमन कमीशन' का भी विरोध किया। भारतीयों के द्वारा किये गये इस तिरस्कार के परिणामस्वरूप अंग्रेज हिंसा पर कृतर आये। इसी आन्दोलन में पंजाब केसरी लाला लाजपतराय भी सम्मिलित हो गये। सम्पूर्ण देश में हिंसक क्रान्ति प्रारम्भ हो गयी। गांधीजी ने भारतीय जनता को समझाया और उसे अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने नमक कानून तोड़ने के लिए डाण्डी यात्री की। इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद सम्पूर्ण देश में आन्दोलन छिड़ गया कुछ दिनों बाद गांधीजी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया उनका यह नारा सम्पूर्ण देश में गूंजने लगा। इस आन्दोलन में विदेशी वस्तुओं की होली जलायी गयी, दानों में आग लगा दी गयी, रेलवे लाइनों को उखाड़ फेंका गया और सड़कों तदा पुलों को तोड़ दिया गया। आन्दोलनकारियों द्वारा सम्पूर्ण शासन व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया गया। इस समय अंग्रेजों का दमन चक्र भी सीमा को पार कर गया था। गांधीजी ने अनशन प्रारम्भ कर दिया। इसी समय कारावास
में बन्द उनकी धर्मपत्नी की मृत्यु हो गयी। गांधीजी इस आघात से क्षण भर के लिए व्याकुल अवश्य हुए, किन्तु पत्नी के स्वर्गवास ने रेजों के विरुद्ध उनके आन्दोलन को और अधिक दृढ़ता प्रदान की।
पंचम सर्ग
खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में अंग्रेजों की निराशा का वर्णन किया गया है। 1945 ई० में द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त हो जाने के विश्व की राजनीति में भी परिवर्तन हुआ। इंग्लैण्ड में चुनाव हुए और वहाँ पर मजदूर दल की सरकार बनी। इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की कि जून, 1947 ई0 से पूर्व ही अंग्रेज भारत छोड़ देंगे। इस सूचना से सम्पूर्ण देश में प्रसन्नता की लहर दीड़
। किन्तु इसी समय अंग्रेजों के षड्यन्त्र और मुस्लिम लीग की हठधर्मिता से पाकिस्तान बनाने की बात भी सामने आयी। मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान बनाने की बात पर अड़े रहे। परिणाम यह हुआ कि 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त होने के साथ-साथ देश दो टुकड़ों में विभाजित हो गया। नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। इससे गांधीजी को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने साम्प्रदायिक दंगों को शान्त करने का भरसक प्रयत्न किया। इस प्रकार भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का अन्त हो गया, परन्तु देश के विभाजन से गांधीजी को अपार दुःख हुआ। उन्होंने देश
की बागडोर जवाहरलाल नेहरू को सौंपकर सन्तोष की सांस ली। खण्डकाव्य के अन्त में गांधीजी साबरमती के आश्रम में बैठकर देश के प्रति किये गये अपने महान् कार्यों का विश्लेषण करते हुए दिखाये गये हैं। वे भारत के उज्ज्वल एवं मंगलमय भविष्य की कामना करते हैं और इसी के साथ खण्डकाव्य की कथा समाप्त हो जाती है।
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●VIVEK KUMAR●