बलिदान कहानी - प्रेमचंद
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बलिदान कहानी 2021-22
🤩 कहानी का सारांश 🤩
हिंदी साहित्य के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखित बलिदान गिरधारी किसान की कहानी है। जो तत्कालीन ग्रामीण समाज में व्याप्त जमीदारी प्रथा का शिकार बन जाता है।
हरखू का परिचय
👉हरखचन्द्र कुरमी अर्थात् हरखू का 20 साल पहले शक्कर का व्यवसाय था। यह व्यवसाय खूब फैला हुआ था। विदेशी शक्कर के आ जाने से व्यवसाय पर बुरा प्रभाव पड़ा, धीर-धीरे करके कारखाना, जमीन और ग्राहक सभी समाप्त हो गए। हरखचन्द्र, जोकि पहले ठाठ से जिया करता था। लेकिन आज हरखू सिर पर टोकरी लिए खाद फेंकने जाता है। हरखू जमींदार ओंकारनाथ के खेत जोतता है। अब उसके पास केवल पाँच बीघा जमीन, दो बैल और एक हल बचा है।
हरखू की बीमारी और उसकी मृत्यु
👉पहले बीमार होने पर बिना दवाई खाए ठीक हो जाने वाला हरखू इस बार ऐसा बीमार पड़ा कि खाट से उठ ही नहीं पाया। हरखू का बेटा गिरधारी उसे घरेलू औषधियों; जैसे- नीम की सींके, गुर्च का सत तथा गदापूरना की जड़ देकर उपचार करता रहा। परन्तु इन औषधियों से हरखू को कोई लाभ न हुआ। हरखू से मिलने आए मंगलसिंह व कालिकादीन ने उसे घरेलू इलाज की अपेक्षा अंग्रेजी दवाई खाने की सलाह दी, लेकिन किसी ने भी दवा की व्यवस्था नहीं की। हरखू जब उनसे दवा माँगता तो वे लोग कतराकर (बचकर) निकल जाते। हरखू को महसूस हो गया था कि अब उसका अन्त समय आ गया है। पाँच महीने तक कष्ट भोगने के बाद 70 वर्षीय हरखू ठीक होली के दिन इस संसार से विदा हो गया।
गिरधारी द्वारा नजराना न देने पर उसके खेतों का छिन जाना
👉गिरधारी ने पिता हरखू की मृत्यु हो जाने पर उसका क्रिया-कर्म बड़े धूमधाम से किया। जिसके कारण उसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो जाती है। हरखू के मरने के पश्चात् सभी गाँव वालों की नजर हरखू के उपजाऊ खेतों पर थी। जिनमें साल में तीन-तीन फसलें पैदा होती थीं। गाँव के लोगों द्वारा लालच दिए जाने पर लाला ओंकारनाथ गिरधारी से खेतों की जुताई के बदले 100 रुपये नजराने की माँग करता है। जोकि गिरधारी के लिए चुका पाना असम्भव ही था। लाला ओंकारनाथ को गिरधारी द्वारा नजराना न दिए जाने पर उन खेतों को कालिकादीन को दे देता है। इस प्रकार गिरधारी से उसके जीवन का एकमात्र सहारा अर्थात् खेत भी उससे छिन जाता हैं।
गिरधारी द्वारा बैलों को बेचा जाना
कालिकादीन द्वारा खेत ले लिए जाने पर गिरधारी अत्यन्त दुःखी था। खेत जोतने का समय आने पर गाँव में हलचल सी मची हुई थी। गिरधारी भी खेत जोतने की खुशी में पागल सा हो गया था, लेकिन वह भूल गया था कि उसके खेत तो बिक चुके है। खराब आर्थिक स्थिति के चलते एक दिन मंगलसिंह गिरधारी से बैलों को बेचने की बात कहता है, तभी तुलसी बनिया भी गिरधारी से उधार दिए गए पैसों की माँग करने लगता है। अवसर का लाभ उठाकर मंगलसिंह गिरधारी से उसके 80 रुपये के बैल 60 रुपये में खरीद लेता है।
गिरधारी का लापता हो जाना
खेतों के छिन जाने और बैलों के बिक जाने पर गिरधारी बहुत परेशान था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब पेट भरने की व्यवस्था कैसे होगी। क्या उसे किसी के यहाँ मजदूरी करनी पड़ेगी? उसका हृदय दुःख और मान-मर्यादा की चिन्ता से व्याकुल हो रहा था। बैलों के बिक जाने पर तो उसने रात को खाना भी नहीं खाया। अगले दिन गिरधारी का कहीं कुछ भी पता नहीं था। लोगों ने उसे पूरा दिन ढूँढा पर वह कहीं भी नहीं मिला।
ग्रामवासियों द्वारा गिरधारी को प्रेतात्मा माना जाना
गिरधारी के कहीं भी न मिलने से सुभागी बहुत परेशान थी। अँधेरा होने पर अचानक उसे ऐसा लगा कि गिरधारी बैलों की नाँद के पास सिर झुकाए खड़ा है। सुभागी द्वारा उसके पास जाने पर वह न जाने कहाँ गायब हो गया। अगले दिन जब कालिकादीन सुबह अँधेरे खेतों में हल लगा रहे थे। तो उन्हें लगा कि गिरधारी खेत की मेड़ पर खड़ा है। कालिकादीन भी जब उसके पास पहुँचे तो वह गायब हो गया। सारे गाँव में गिरधारी के भूत बन जाने की अफवाह फैल गई। कालिकादीन ने गिरधारी के खेतों से त्यागपत्र दे दिया है, क्योंकि आज भी गिरधारी की प्रेतात्मा खेत की मेड़ पर बैठी दिखाई देती है और कभी-कभी उसके रोने की आवाज भी सुनाई देती है।
गिरधारी के बेटे की नौकरी के कारण घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होना
गिरधारी के गायब होने के पश्चात् उसका बड़ा लड़का ईंट के भट्ठे पर काम करने लगता है और 20 रुपये महीना कमाता है। अब वह कमीज और जूता पहनता है। घर में दोनों वक्त खाना बनता है तथा जौ के बदले गेहूँ खाया जाता है। इस तरह गिरधारी के घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हो चुका है, परन्तु गाँव में उसके बेटे का कोई आदर-सम्मान नहीं है, क्योंकि गिरधारी का बेटा मजदूर है। सुभागी भी छिपी-छिपी फिरती है और अब पंचायत में भी नहीं बैठती है।
Write by vivek kumar