यह खंडकाव्य मेरठ, फरुखाबाद, पौड़ीगढ़वाल,पीलीभीत, राय बरेली, उत्तरकाशी जिलों के लिए निर्धारित है।
प्रस्तुत खण्ड-काव्य की कथा-वस्तु और उसका चरित्र-नायक बहुश्रुत पौराणिक रामकथा पर आधारित है जो तुलसीमानस गीतावली, कवितावली तथा मैथिलीशरण गुप्त के 'साकेत' की रामकथा के बहुत ही समीप होते हुए नवीनता और मौलिकता को संत हुए है। खण्डकाव्य के रचयिता हिन्दी के यशस्वी कवि श्री लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' हैं। खण्डकाव्य की कथा रामकथा का एक अंश मात्र है। इसमें राम वनगमन तथा दशरथ की मृत्यु के उपरान्त भरत के अयोग्य
आगमन से लेकर चित्रकूट जाकर राम की चरणपादुका प्राप्त करने तक की ही कथा का उल्लेख है। पूरी कथा छह सर्गों में विस्त है। कथा में कैकेयी के लोक निंदित चरित्र को निर्दोष सिद्ध करके उसकी दूरदर्शिता, लोक कल्याणकारी भावना तथा जनहित में उसकी त्याग-भावना को उजागर करना ही कवि का मुख्य उद्देश्य है। वह राम को वन इसलिए नहीं भेजती कि वह भरत को राजसिंहासन दिलाना चाहती है बल्कि वह राम को वन में इसलिए भेजती है कि राम को वह यशस्वी बनाना चाहती है, वह उसी चरित्र का विकास करना चाहती है, साथ ही राज्य के पिछड़े क्षेत्र की कठिनाइयों, अत्याचारों से राम को अवगत कराकर उन्से उसका निवारण कराना चाहती है। वैसे राम उन्हें भरत से भी प्रिय हैं। भरत से यह कार्य सम्भव नहीं था, चारों राजकुमारों क। शिक्षा-दीक्षा अवधपुर में साथ-साथ हुई थी किन्तु राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ रहकर भरत और शत्रुघ्न की अपेक्षा और में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ था। अयोध्या का शासन करना उतना कठिन नहीं था जितना दक्षिण के आदिवासियों और साधु-संन्यासियों के संकट को दूर करना। इसी समाजवादी विचारधारा का कैकेयी के चरित्र में समावेश करा कैकेयी के चरित्र को लोक कल्याणकारी तथा त्यागी रूप में चित्रित करके कवि अपनी कथावस्तु की मौलिकता प्रतिपादित काल है। कैकेयी के चरित्र के साथ-साथ उर्मिला और माण्डवी तथा सुमित्रा के चरित्र का भी कवि ने खण्ड-काव्य की सीमित परिधि अन्तर्गत समुचित विकास करने का यथासम्भव प्रयास किया है। चारित्रिक विशेषताओं एवं नायक के उदात्त गुणों की व्यंजन है साथ-साथ वर्तमान राष्ट्रीय और सामाजिक सन्दर्भों में नये मूल्यों एवं नवीन उद्भावनाओं की स्थापना भी खण्ड-काव्य की कथा की गयी है। सामन्तवादी वर्गभेद के परिणामस्वरूप मानवीय संवेदनशीलता का हास हो चुका था, सर्वत्र असमानता और अधिक विषमता फैल गयी थी। कवि ने प्रस्तुत खण्डकाव्य को कथा में एक मौलिक मोड़ देकर वर्ग-भेद मिटाने का संकेत किया है और वर्ग विषमता की खाई को पाटने का प्रयास किया है। रानी कैकेयी अपने प्रिय पुत्रं को जन-जीवन के उत्थान के लिए पत्थर का कलेजा बनाकर वन में भेजती हैं। राम अर्द्ध सभ्य जन-जातियों की सेवा और उनके उद्धार के लिए सेवा हित के वनवासी इससे के गौरव का अनुभव करते हैं सुमित्रा के मन में भी वनवासियों के प्रति प्रेम और संवेदना है। भरत तो मानव-सेवा की प्रतिमा ही हैं। वे जनजीवन की सेवा निःस्वार्थ भाव से करके पाठकों के समक्ष अपना अमिट आदर्श छोड़ जाते हैं। इसी प्रकार लोकनिन्दित होकर भी विधवा बन अपने पुत्र को लोकहित के लिए समर्पित कर देती हैं। वह भरत को समझाते हुए कहते ।
लोग भले ही मुझे स्वार्थरत नीच बतायें।
भले क्रूर माता कह मुझे कलंक लगायें।
पर मैंने जो किया उसी में सबका हित है। जन-जीवन सुख हेतु व्यक्ति का त्याग उचित है ।।
कथावस्तु के विकास के लिए प्रकृति-चित्रण का भी सहारा लिया गया है। चित्रकूट और अयोध्या को चित्रित करके कवि कथानक की रमणीयता को सजीव बना देता है। प्रकृति की अद्भुत चेतना से मानव मन को शान्ति और अलौकिक सुख का सन्देश मिलता है। पूरा खण्ड-काव्य एक ही छन्द में लिखा गया है।
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VIVEK KUMAR