यह खंडकाव्य वाराणसी, इटावा, बिजनौर, जालौन, अल्मोड़ा, बदायूं जिलों के लिए निर्धारित है।
प्रथम सर्ग (ईश स्तवन)
प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने प्रथम सर्प मंगलाजयण के रूप में प्रस्तुत किया है तथा ईश्वर का स्तवन विका है तथा ईश्वर की सर्वव्यापकता का वर्णन किया है।
द्वितीय सर्ग (दशरथ-पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल)
इस संग में कवि ने राजा दशरथ के चारों पत्रों के जन्म का वर्णन किया है। ये चार पुत्र हैं- राम, भरत, लक्ष्मण आर रोल क बालकों का बचपन राजमहल में ही व्यतीत हुआ। उनकी बचपन की लीलाएँ इक्ष्वाकु वंश की मर्यादा को बढ़ाती हैं तथा राजमहल की शोभा को दुगुना कर देती हैं। महाराज दशरथ का यश संसार के कोने-कोने में फैला है, वे कर्तव्यपरायण, दानवीर तथा युद्ध विद्या में पारंगत है। युद्ध विद्या में उनकी समानता कोई नहीं कर सकता है। युद्ध में वे सदैव विजयी होते थे राजा दशरथ नीतिज्ञ, सुख-शान्ति में विश्वास करनेवाले तथा सच्चरित्र थे।
तृतीय सर्ग (मेघनाद)
इस सर्ग में मेघनाद के पराक्रम का वर्णन किया है। मेघनाद का तेज सूर्य के समान है। अपनी युवावस्था उसने इन्द्र के पुत्र जयन्त को भी पराजित कर दिया था। पृथ्वी पर रहनेवाले सभी राजा मेघनाद के नाम से काँपते थे।
चतुर्थ सर्ग। (मकराक्ष वध)
चतुर्थ सर्ग में मकराक्ष का वध तथा राजा रावण की चिन्ता का वर्णन कवि ने किया है। रामचन्द्र जी के तीखे बाणों के प्रहार से सभी राक्षस भागने लगे तथा मकराक्ष की मृत्यु हो गयी। मकराक्ष की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण का मुख पीला पड़ गया तथा वह अति चिन्ता मग्न हो गया। मकराक्ष के वध के पश्चात् रावण ने मेघनाद को युद्ध में भेजने की योजना बनायी क्योंकि वह मेघनाद को भी अपने समान ही पराक्रमी तथा वीर समझता था।
पंचम सर्ग (रावण का आदेश)
पंचम सर्ग में रावण द्वारा मेघनाद की वीरता का वर्णन किया गया है। गवण मेघनाद की शक्ति को अजेय शक्ति समझता है, किन्तु से अति चिन्तित है। रावण को चिन्तामग्न देखकर मेघनाद ने उसके चरणों का स्पर्श किया। रावण ने अपने मन की पीड़ा को मेघनाद के समक्ष इस प्रकार व्यक्त किया- "हे पुत्र! तुम्हारे होते हुए सम्पूर्ण राज्य में युद्ध के भय से हलचल मच गयी है। हमें युद्ध में किसी भी प्रकार भयभीत नहीं होना है। राम से बदला न लेने में हमारी कायरता है, इसलिए हमारा आदेश है कि तुम युद्ध में लक्ष्मण को मृत्यु
की गोद में सुला दो।" इस प्रकार रावण ने मेघनाद के शौर्य की प्रशंसा करते हुए उसे युद्ध में भेजा। रावण को पूर्ण विश्वास है कि मेघनाद मकराक्ष वध का बदला लेकर शत्रुओं को परास्त अवश्य ही कर देगा।
सष्ठ सर्ग (मेघनाथ की प्रतिज्ञा)
मेघनाद सिंह की तरह गरजता हुआ युद्ध में विजय प्राप्ति की प्रतिज्ञा करता है। उसकी गर्जना से रावण का स्वर्ण महल भी हिल
जाता है। मेघनाद ने कहा कि मैं राम और लक्ष्मण की शक्ति को चुनौती दुँगा और लंका को कष्ट में पड़ने से पहले ही बचा लूगा है
पिता! में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अवश्य ही विजय को प्राप्त करूँगा यदि युद्ध में विजयी न हुआ तो फिर कभी जीवन में युद्ध का नाम ही न लूँगा।
सप्तम सर्ग ( मेघनाद का अभियान)
प्रस्तुत सर्ग में मेघनाद द्वारा युद्ध की तैयारी और युद्ध के लिए अभियान का वर्णन किया गया है। मेघनाद ने अपनी सेना को तैयार होने का आदेश दिया है और स्वयं भी वीर वेश धारण कर शस्त्रों से सुसज्जित हुआ है। मेघनाद के इस अभियान को देखकर देवता लोग भयभीत होने लगे हैं और उन्हें राम की चिन्ता होने लगी है। देवता ऐसा सोच रहे थे कि मेघनाद के सामने तो काल की भी नहीं चलेगी। देवता इस प्रकार परस्पर वार्ता कर ही रहे थे, तभी मेघनाद ने युद्धभूमि में भयंकर गर्जना की।
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VIVEK KUMAR