Raja Harishchandra ka jeevan parichay || Life introduction of raja Harishchandra || राजा हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

भारतेंदु राजा हरिश्चन्द्र जी का जीवन परिचय

साहित्यिक जीवन परिचय
  👉आधुनिक हिंदी युग के जनक माने जाने वाले भारतेंदु राजा हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ई0 में काशी के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता सेठ श्री गोपाल चंद्र गिरिधर दास जी थे। जो एक साहित्यकार थे। जो ब्रज भाषा में कविता लिखते थे| मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही माता-पिता के सुख से वंचित हो जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र की शादी 13 वर्ष की अल्प आयु में ही मन्नू देवी के साथ कर दी गई। आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई और इन्होनें हिंदी उर्दू एवं बंगला और अंग्रेजी का अध्यन किया। काशी के क्वीन कॉलेज में प्रवेश लेने के बावजूद इनका मन काव्य रचना में  ही लगा रहा। मात्र 5 वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने एक दोहा लिख  कर अपने भविष्य की अलिखित घोषणा कर दी थी। काव्य रचना के अतिरिक्ति ईनकी रूचि यात्राओं मैं बहुत थी।  भारतेंदु उदार एवं दानी प्रकृति के व्यक्ति थे। अत्यधिक उदारता के कारण ही इन की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और यह  श्रणग्रस्त हो गए थे। उसी तनाव में छय रोग के शिकार हो गए जिसकी अंतिम परिणति मात्र 35 वर्ष की अल्प आयु में ही 1885 ई o में इनकी मृत के रुप में सामने आई। अपने छोटे से जीवनकाल में ही इन्होने हिंदी की जो सेवा की उसके लिए इन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।
साहित्य योगदान 
  👉भारतेंदु एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि युग थे। वह अपने युग की संपूर्ण चेतना के केंद्र बिंदु थे। प्राचीनता के पोषक ,नवीनता के उन्नयक  , वर्तमान में व्याख्याता एवं भविष्यदृष्टा भारतेंदु ने 1868 ई0 में "कवि वचन सुधा" नामक पत्रिका का संपादन प्रारंभ किया। इसके 5 वर्ष बाद 1873 ई0 मैं इन्होंने हरिश्चंद्र मैग्नीज का संपादन प्रारंभ किया। केवल 8 अंकों के बाद ही पत्रिका का नाम हरिश्चंद्र पत्रिका हो गया। वस्तुतः हिंदी गद्य को एक नया रूप प्रदान करने का श्रेय इसी पत्रिका को प्राप्त है। सब जगत एवं उर्दू फारसी के कठिन शब्दों की जगह सरल एवम् प्रचलित शब्दों के प्रयोग ने हिंदी को जन सामान्य से जुड़ने में सहायता प्रदान की भारतेंदु अपने समकालीन रचनाकारों के नेता थे। इनके इर्द-गिर्द एक ऐसी मंडली तैयार हो गई जो हिंदी को एक नई चाल में ढलने के लिए व्रत संकल्प थी। भारतेंदु जी अपनी मंडली के लिए केवल मार्गदर्शक थे। इन्होंने अपनी सामाजिक राजनीतिक चेतना को राष्ट्रीयता के साथ मिलकर एक ऐसी नवीन चेतना उत्पन्न की जिसे सभी समकालीन लेखक अपना आदर्श मानने लगे। तत्कालीन पत्रकारों ने ही 1880 ई0 में इन्हें भारतेंदु की उपाधि से सम्मानित किया।
 भारतेंदु ने निबंध, नाटक ,यात्रा व्रत ,आदि विधाओं में गद्द रचना की जिनमें निंलिखित उल्लेखनीय है। नाटक भारतेंदु जीने मौलिक तथा अनुचित दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की है। जो निम्न प्रकार है।
मौलिक अधिकार
  • सत्य हरिश्चंद्र 
  • नील देवी 
  • भारत दुर्दशा
  • अंधेरे नगरी 
  • वैदिक
  • हिंसा हिंसा ना भवति
  • सती प्रताप
  • प्रेम जोगिनी  
अनुदित
  • रत्नावली भारत जननी
  • विद्या सुंदर 
  • पाखंड विडंबना 
  • धनंजय विजय
  • कर्पूर मंजरी 
  • दुर्लभ बंधु 
निबंध संग्रह 
  • सुलोचना
  • परिहास वनचक 
  • मदालसा 
  • दिल्ली दरबार दर्पण 
  • लीलावती
 इतिहास 
  • अग्रवालों की उत्पत्ति 
  • कश्मीर कुसुम
  • महाराष्ट्र देश का इतिहास 
  • यात्रा वृतांत ल
  • खनऊ की यात्रा
  • सरयू पार की यात्रा 
जीवनी 
  • सूरदास
  • जय देव
  • महात्मा मोहम्मद आदि 
 भाषा शैली
 भारतेंदु जी की भाषा एवं शैली संबंधी निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
भाषा गत विशेषताएं 
 भारतेंदु से पूर्व हिंदी साहित्य में गद्य का प्रयोग अत्यधिक सीमित था। साहित्य में ब्रज भाषा का प्रयोग होता था। जो गद्य के अनुरूप विचारों एवं बौद्धिकता को वहन करने में असमर्थ थी। भारतेंदु ने  आधुनिक चेतना के अनुरूप विचारों को एवं बौद्धिकता को वहन करने में समर्थ खड़ी बोली को साहित्य में प्रयोग करने को बढ़ावा दिया था। इसी के अनुरूप गद्द विधाओं का विकास हुआ। भाषा में जंग सामान्य मैं प्रचलित सरल शब्दों एवं लोकोक्तियो या मुहावरों का प्रयोग बढा। भारतेंदु के प्रयास से विचारों एवं आधुनिक चेतना को वहन करने में समर्थ गद्य विधा इसी के अंतर्गत खड़ी बोली का प्रयोग किया जाने लगा। साहित्य सामान्य के दुख दर्द से जुड़ा और व्यापक चेतना को प्रसारित करने के लिए एक सशक्त माध्यम बना ।
शैलीगत विशेषताएं
भारतेंदु की गद्य शैली जीवन एवं व्यवस्थित है। जो ह्रदय की अनुभूति को सटीक ढंग से साहित्य  में पूरी तरह सक्षम भाषा में प्रवाह है तथा जब सावन की रूचि के अनुरूप उन्होंने व्यापक स्तर को भाषा को सहज एवं जीवंत बनाने के लिए लोकोक्तियां वह मुहावरों का अत्यधिक खुलकर प्रयोग किया इनकी लेखन शैली की निंलिखित विशेषताएं हैं। जो इस प्रकार है। वर्णात्मक शैली प्रचलित वाक्यों लोकोक्तियां एवं मुहावरों से किया गया था। इनकी लेखन शैली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं। जो इस प्रकार हैं ।
  • वर्णनात्मक शैली
  • विवरणात्मक शैली 
  • विचारात्मक शैली 
  • भावात्मक शैली
  • व्यंगात्मक शैली
  • गवेषणाआत्मक शैली
  • विवेचनात्मक शैली
Text write by @vivek kumar
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