🤩 आकाशदीप कहानी का सारांश 🤩
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आकाशदीप आदर्श प्रेम पर आधारित कहानी है। चम्पा एक अनाथ युवती है, जो स्वतन्त्र जीवन की लालसा व पिता के हत्यारे से प्रतिशोध लेने की भावना और उसी के प्रति प्रेम की भावना के कारण उपजे अन्तर्द्वन्द्व में फँसी है। अन्ततः चम्पा अपने प्रेम भाव का त्याग कर सेवा मार्ग का चयन करती हैं।
चम्पा एवं बुद्धगुप्त की प्रथम भेंट
👉'आकाशदीप' कहानी का आरम्भ समुद्र की तरंगों पर हिचकोले खाते पोत पर बन्दी बनाकर रखे गए दो बन्दियों के वार्तालाप से होता है। दोनों बन्दी एक-दूसरे से अपरिचित एवं अनजान हैं। तूफान के कारण पोत की व्यवस्था भंग होने पर दोनो बन्धनमुक्त होने में सफल हो जाते हैं। बन्धनमुक्त होकर हर्षातिरेक में उन्हें एक-दूसरे को गले लगाने पर पता चलता है कि उनमें से एक स्त्री है और दूसरा पुरुष स्त्री का नाम चम्पा है। जो पोताध्यक्ष मणिभद्र के प्रहरी की इकलौती किशोर क्षत्रिय पुत्री है। जबकि पुरुष का नाम बुद्धगुप्त है। जो एक युवा जलदस्यु है तथा मणिभद्र द्वारा उसे है बन्दी बनाकर रखा हुआ है। पोताध्यक्ष मणिभद्र ने अपनी काम-वासना की तृप्ति में विफल होकर चम्पा को भी बन्दी बनाकर रखा हुआ था।
चम्पा द्वीप का नामकरण तथा उस पर निवास
👉बन्धनमुक्त होने के लिए होने वाले स्वातन्त्र्य युद्ध में पोताध्यक्ष मणिभद्र बुद्धगुप्त द्वारा मारा जाता है और पोत का नायक युद्ध में परास्त होकर बुद्धगुप्त की शरण ले लेता है। दो दिन पश्चात् नौका एक नए द्वीप पर पहुँचती है। जिस द्वीप का नाम बुद्धगुप्त चम्पा द्वीप रखता है।
बुद्धगुप्त का प्रणय प्रस्ताव
👉बुद्धगुप्त व चम्पा को इस द्वीप पर रहते हुए 5 वर्ष बीत चुके हैं। चम्पा द्वीप के निवासी चम्पा को रानी कहते हैं। दस्युवृत्ति छोड़ चुका बुद्धगुप्त चम्पा के सम्मुख अपना प्रणय प्रस्ताव रखता है। लेकिन चम्पा उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है, क्योंकि चम्पा बुद्धगुप्त को अपने पिता का हत्यारा समझती है
चम्पा द्वारा बुद्धगुप्त के प्रेम को स्वीकारना
👉अन्ततः चम्पा बुद्धगुप्त के समक्ष अपना हृदय हार जाती है तथा अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए रखे हुए कृपाण को भी कंचुकी से निकालकर समुद्र में फेंक देती है। बुद्धगुप्त को लगता है कि उसे चम्पा ने क्षमा कर दिया है, परन्तु वह अभी भी उससे घृणा करती है। फिर भी उसके लिए अपने प्राण त्याग सकती है। चम्पा भावातिरेक हो जाती है तथा बुद्धगुप्त से उसके प्रति अपने प्रेमभाव को स्वीकारती है।
विवाह समारोह की तैयारी तथा बुद्धगुप्त द्वारा चम्पा के समक्ष अपने मनोभावों को व्यक्त कर
👉एक दिन द्वीप पर किसी समारोह की तैयारियाँ चल रही थीं। पता करने पर चम्पा को सूचना मिलती है कि उसके और बुद्धगुप्त के विवाह की तैयारियाँ चल रही हैं। वह अपने विवाह की सूचना सुनकर आश्चर्यचकित रह जाती है। चम्पा द्वारा पूछने पर बुद्धगुप्त उससे कहता है कि यदि तुम्हारी स्वीकृति हो तो यह सच भी हो सकता है। बुद्धगुप्त चम्पा के पैर पकड़कर अपनी मनोकामना व्यक्त करता है कि वह उसे अपनी राजरानी बनाकर अपने देश भारत ले जाना चाहता है। चम्पा बुद्धगुप्त के प्रस्ताव को ठुकरा देती है और उसे अकेले ही भारत लौट जाने को कहती है।
चम्पा में विरक्ति भाव जाग्रत होना तथा उसकी समर्पण भावना
👉बुद्धगुप्त के जाने के पश्चात् चम्पा स्वयं को सभी सांसारिक आकर्षणों से मुक्त कर लेती है। उसके लिए सब भूमि मिट्टी है और सब जल तरल है। वह अपना सम्पूर्ण जीवन राह भटके नाविकों के लिए आकाशदीप जलाने में लगाना चाहती है। चम्पा ने अपना जीवन चम्पा द्वीप के लिए समर्पित कर दिया। तत्पश्चात् उस द्वीप के निवासी उस स्नेह-सेवा की देवी की समाधि की पूजा करने लगे, परन्तु प्रकृति की कठोरता ने उसे भी एक दिन अपने में विलीन कर लिया।
Write by Vivek Kumar