Dhruv yatra ki kahani
ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश
👉चयात्रा' एक मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण से सम्मान्वित के एक नई विचारधारा को जन्म दिया है। इस कहानी में एक सुसंस्कारित युवती के प्रेम का चरित्र-चित्रण किया गया है तथा 'प्रेम' को नारी से एवं उच्चस्थान दिया गया है। इस कहानी का प्रत्येक पात्र कर्त्तव्यनिष्ठता एवं नैतिकता के प्रति सचेत दिखाई देता है। अतः कहना यह है कि जैनेन्द्र कुमार द्वारा यह कहानी मनोवैज्ञानिकता के साथ-साथ दार्शनिकता से ओत-प्रोत है।
उत्तरी ध्रुव पर विजय के पश्चात् राजा का भारत आगमन
👉आज के समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठ पर राजा रिपुदमन बहादुर के उत्तरी ध्रुव की विजय की खबर छपी थी। वे यूरोपवासियों की बधाइयाँ लेते हुए भारत लौट रहे थे। भारत लौटने से पूर्व वे यूरोपवासियों को 'अद्भुत' पूजा की आदत छोड़ने का सन्देश देते हैं। अर्थात् उत्तरी ध्रुव पर विजय पाना कोई असम्भव या अद्भुत कार्य नहीं है। वे यूरोपवासियों को प्रेरित करने का सन्देश देते हैं। मुम्बई आगमन के पश्चात् उनके स्वागत की तैयारियाँ चरम पर थी। चारों ओर खुशहाली का माहौल था, परन्तु वह न जाने क्यों अपनी सफलता से खुश नहीं थे। वे अत्यन्त व्याकुल थे तथा शीघ्रता से दिल्ली आना चाहते थे। इस प्रकार भारत आगमन के पश्चात् भी रिपुदमन का मन स्थिर नहीं था।
उर्मिला की प्रतिक्रियाएँ
👉रिपुदमन उत्तरी ध्रुव की विजय के पश्चात् अखबारों की सुर्खियों में छाए हुए थे। उर्मिला, रिपुदमन की प्रेमी थी। उर्मिला रिपुदमन से सम्बन्धित प्रतिदिन अखबार में छपी हुई खबरें पढ़ती थी। जब उर्मिला ने रिपुदमन की जीत की खबर पढ़ी तब वह अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने और रिपुदमन के सोते हुए पुत्र (रिपुदमन की प्रतिच्छाया) को चूमने लगी। परन्तु अगले दिन की खबर पढ़ते हुए उर्मिला ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, क्योंकि आज समाचार-पत्र में छपा था कि रिपुदमन अपनी उत्तरी ध्रुव की विजय से प्रसन्न नहीं हैं। रिपुदमन द्वारा जब दिल्ली छोड़ने व दिल्ली से बहुत दूर जाने की खबर उर्मिला पढ़ती है। तो वह रिपुदमन के वियोग के भय से व्याकुल होकर बेचैन हो उठती है। इसी बेचैनी के कारण जहाँ पहले सोते हुए बच्चे को उर्मिला ने चूमा था। अब उसे बलपूर्वक उठा देती है और उसे कन्धे से लगाकर कमरे में घूमने लगती है। यहाँ भी ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने पुत्र में रिपुदमन की प्रतिच्छाया देखती है और वह उसे कन्धे से इसलिए लगाई हुई है। ताकि वह उससे कहीं दूर न जा सके। इन सभी परिस्थितियों ने उर्मिला की व्याकुलता को दर्शाया है।
राजा रिपुदमन की व्याकुलता
👉राजा रिपुदमन मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं थे। उन्हें नींद कम आने लगी थी। उनका अपने मन पर काबू नहीं था तथा एकाग्रता की कमी की समस्या उत्पन्न होने लगी थी। जिस बात को वह भूलना चाहते थे। वह उन्हें और अधिक स्मरण होती थी। वे अपनी ही कल्पनाओं से भयभीत हो उठते थे। उनके मन में इस तरह की अस्त-व्यस्त बातें घर कर चुकी थीं कि उनका मन अब स्वयं से ही असन्तुष्ट हो गया था। यही कारण था कि राजा रिपुदमन व्याकुल व बेचैन-से रहने लगे थे।
राजा रिपुदमन का आचार्य मारुति से भेंट करना
👉आचार्य मारुति विश्व प्रसिद्ध मानसिक उपचारक वैद्य थे। राजा रिपुदमन स्वयं के मानसिक उपचार के लिए बड़ी श्रद्धा व उम्मीद लेकर भारत लौटे थे। राजा रिपुदमन की विजयी प्रसिद्धि इतनी व्यापक हो गई थी कि उन्हें अन्य कार्यों के लिए अवकाश ही नहीं मिलता था। एक दिन अवकाश पाते ही वह आचार्य मारुति से भेंट करने पहुँचे। आचार्य ने रिपुदमन को देखते ही कहा कि वैद्य के पास तो रोगी आते हैं लेकिन वेद जी मेरे पास किस सौभाग्य से आए हैं?" रिपुदमन ने विजय को छल बताते हुए कहा कि आपसे मिलने रोगी ही आया है। आचार्य ने राजा रिपुदमन के चेहरे पर विजय के पीछे छुपी पराजय को देख लिया था। रिपुदमन ने आचार्य को अपनी सारी समस्याएँ बताईं। उनकी समस्याएँ सुनने के पश्चात् आचार्य ने रिपुदमन को स्वस्थ घोषित करते हुए अगली भेंट के लिए आमंन्त्रित किया।
रिपुदमन के हृदय में आत्मीय-प्रेम भावना जाग्रत कराना
👉रिपुदमन भले ही उत्तरी ध्रुव पर विजय प्राप्त कर चुके थे, परन्तु प्रसन्नता के स्थान पर व्याकुलता ही उनका साथी बन चुकी थी। इसी कारण वे मानसिक रूप से अस्वस्थ अनुभव करने लगे थे। आचार्य से दूसरी भेंट ने रिपुदमन को अपनों से विमुख न होने की सलाह दी। रिपुदमन के जीवन में अपनों के स्नेह व प्रेम का अभाव था। इसी कारण आचार्य ने रिपुदमन को अपनों का मन जीतने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि विजेता को जीतने के लिए उपाय बहुत हैं, पर अपनों का मन जीतना भी छोटी बात नहीं है। जब रिपुदमन विवाह को बन्धन मानते थे। तब आचार्य उनसे प्रेम के सम्बन्ध में पूछते हैं। प्रेम के सम्बन्ध में रिपुदमन कुछ जवाब नहीं देते। इस बात पर आचार्य प्रेम और विवाह का सह-सम्बन्ध स्थापित करते हुए बोले कि विवाह का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। प्रेम के निमित्त से उसकी सृष्टि है। इस प्रकार आचार्य रिपुदमन को प्रेम भावना के प्रति जाग्रत करते हैं। इसी कारण वह अपनी प्रेयसी से भेंट करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं।
राजा रिपुदमन की उर्मिला से भेंट
👉बाजा रिपुदमन ने उर्मिला से विवाह नहीं किया है, किन्तु उन दोनों के प्रेम सम्बन्धों के कारण उनकी एक सन्तान है। उर्मिला राजा से मिलने आई तो साथ में अपने बच्चे को भी लाई। जिसके नाम को लेकर उन दोनों के बीच चर्चा होती है। दोनों बात करने के लिए जमुना किनारे पहुँच जाते हैं। वहाँ उर्मिला राजा से कहती है कि तुम अब मेरी एवं मेरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त हो। तुम अपने स्वप्न व कार्य को अधूरा छोड़ वापस क्यों आए हो? इसका जवाब देते हुए रिपुदमन पूछता है कि मेरा काम क्या है? इस पर उर्मिला कहती है कि तुम्हारा कार्य मेरी या मेरे बच्चे की चिन्ता करना नहीं है। तुम्हारा काम बड़ा है और उसे पूर्ण करो। तुम मेरी चिन्ता करना छोड़ दो, क्योंकि तुम्हारा काम उससे कहीं अधिक बड़ा है और इस बात के लिए मैं तुम पर गर्वित हूँ। अब तुम निश्चिन्त होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करो। उर्मिला सिद्धि की प्राप्ति के लिए राजा को दक्षिणी ध्रुव जाने की सलाह देती है।
उर्मिला का त्याग
👉आज वर्षों बाद रिपुदमन अपनी प्रेयसी और बच्चे से मिलने आया था। वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं था। वह अपने लक्ष्य और प्रेम को लेकर धर्मसंकट की स्थिति में फँस चुका था। आचार्य मारुति के निर्देशानुसार राजा रिपुदमन को अपने जीवन में प्रेम की आवश्यकता थी। जिससे वह स्वयं को वंचित मानने लगा था। यही कारण था कि अपनी विजय भी उसे पराजय लगने लगी थी। वह अब अपनी प्रेयसी के साथ रहना चाहता था, परन्तु उर्मिला को यह स्वीकार नहीं था। उर्मिला कदापि नहीं चाहती थी कि रिपुदमन उसके प्रेम के कारण अपने लक्ष्य से भटक जाए। उर्मिला अपने प्रेम की सार्थकता तभी स्वीकार कर सकती थी। जब रिपुदमन अपने लक्ष्य को पूर्ण कर ले इसीलिए वह अपने आप को रिपुदमन के मार्ग में बाधा नहीं बनना चाहती थी। इस प्रकार से उर्मिला ने रिपुदमन के लिए अपने प्रेम का त्याग कर दिया।
लक्ष्य प्राप्ति हेतु रिपुदमन को प्रेरित करना
👉जब रिपुदमन की उर्मिला से भेंट हुई थी। तो वह कहीं-न-कहीं अपने लक्ष्य से भटकने की ओर अग्रसर हो चुका था। उर्मिला ने अपने प्रेम का बलिदान देते हुए रिपुदमन को उसके लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। उर्मिला ने रिपुदमन को हतोत्साहित न होने की प्रेरणा देते हुए तीर के समान लक्ष्य प्राप्ति तक बढ़ते चलने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अतिरिक्त रिपुदमन को यह समझाने का प्रयास भी किया कि तुम्हारी लक्ष्य प्राप्ति व सिद्धि के लिए ही मैं जीवित हूँ। इसलिए तुम अपनी गतिशीलता को अखण्ड रखो। तुम्हें कहीं रुकने के लिए बाध्य नहीं होना चाहिए। तुम्हारे अन्दर अतुलनीय वेग है। तुम इन सब को यूँ ही व्यर्थ नहीं जाने दे सकते। तुम्हें मेरी चिन्ता करने की आवश्यकता कदापि नहीं है। यह पुत्र तुम्हारी निशानी है और तुम मुझसे ऋण मुक्त हो चुके हो। तुम्हें अनन्त पथ की ओर जाना चाहिए और यही गति का आनन्द है। इसी में हम दोनों का सुख है।
प्रेम के सच्चे स्वरूप को दर्शाना
👉उर्मिला ने एक स्त्री तथा प्रेमिका के सच्चे स्वरूप को दर्शाते हुए रिपुदमन को दक्षिणी ध्रुव की यात्रा के लिए प्रेरित किया था। उर्मिला स्वयं को रिपुदमन की प्रेयसी स्वीकार करते हुए कहती है कि मैं तुम्हारे लिए मात्र एक स्त्री भर नहीं हूँ। जो तुम्हारे मार्गद लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करूँ। मैं तुम्हारी प्रेयसी हूँ और जब तक तुम सिद्धि प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक मैं अपने जीवन को सार्थक नहीं समझ सकती। इसीलिए तुम्हे अपने लक्ष्य की ओर उन्मुख होना चाहिए। इस तरह ही तुम मुझे परिपूर्ण और स्वयं को सम्पूर्ण बनाने में सफल हो सकोगे। इतना कहते ही राजा रिपुदमन उर्मिला को रोते हुए पाते हैं, जिस पर उर्मिला कहती है कि तुम चिन्तित न हो यह एक स्त्री रो रही है, परन्तु प्रेमिका प्रसन्न है। स्त्री की मत सुनना, मैं भी पुरुष की नहीं सुनूँगी। हम दोनों प्रेम की सुनेंगे। अतः तुम्हें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
आचार्य का रहस्य प्रकट होना तथा उनका देहावसान
👉राजा रिपुदमन अपनी अगली भेंट के लिए आचार्य के पास जाते हैं तथा वहाँ आचार्य को बताते हैं कि 'उर्मिला पहले विवाह के लिए उद्यत थी, जबकि वे तैयार नहीं थे। गर्भ धारण करने के बाद वे विवाह के लिए तैयार थे, किन्तु उर्मिला ने उन्हें ध्रुवयात्रा पर भेज दिया। अब लौट आने पर वह प्रसन्न नहीं है। वह कहती है कि यात्रा की कहीं समाप्ति नहीं होती। सिद्धि तक जाओ, जो मृत्यु के पार है। आचार्य मारुति राजा को बताते हैं कि उर्मिला उन्हीं की बेटी है। यह जानकर रिपुदमन आश्चर्यचकित हो उठे।
इसके पश्चात् आचार्य ने रिपुदमन और अपनी पुत्री उर्मिला के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, परन्तु उर्मिला को अब यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था। वह नहीं चाहती थी कि रिपुदमन विवाह के बन्धन में बँध कर अपने लक्ष्य से विमुख हो जाए। आचार्य जी के बार-बार अनुरोध करने के पश्चात् भी उर्मिला अपने हठी स्वभाव को प्रकट करती रही और आचार्य के अन्त समय आने पर भी उर्मिला ने प्रेम के सच्चे अर्थ को प्रकट करते हुए उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। आचार्य की दयनीय दशा देखकर उर्मिला ने हा, "मुझ अभागिन के भाग्य में आज्ञा पालन तक का सुख, हाय विधाता क्यों नहीं लिख सका ?" अन्त में उर्मिला ने अपने पिता से स्वयं को भूल जाने का आग्रह किया।
दक्षिणी ध्रुव पर जाने की तैयारी
👉जब राजा रिपुदमन को यह विश्वास हो गया कि उर्मिला किसी भी प्रकार अपने निश्चय से हटने वाली नहीं है। तो वे पूछते हैं कि उन्हें कब जाना है? तो उर्मिला कहती है कि जब हवाई जहाज मिल जाए। राजा भी बिना कुछ सोचे-समझे तुरन्त शटलैण्ड द्वीप के लिए जहाज बुक कर देते हैं। जो तीसरे दिन ही उड़ान भरने वाला था। इतनी जल्दी जाने की बात सुनकर उर्मिला थोड़ी भावुक हो जाती है। लेकिन रिपुदमन कहते हैं कि उर्मिला रूपी स्त्री के अन्दर छिपी प्रेमिका की यही इच्छा है। जिसका पालन करना एक प्रेमी का कर्त्तव्य है। इसके पश्चात् रिपुदमन दक्षिणी ध्रुव पर जाने की तैयारी में जुट जाते हैं। इस खबर से दुनिया के अखबारों में धूम मचगई। लोगों की उत्सुकता का ठिकाना न था। उर्मिला सोच रही है कि आज उनके जाने की अन्तिम सन्ध्या है। राष्ट्रपति की ओर से भोज दिया गया होगा। एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े लोग उसमें शामिल होंगे। कभी वह अनन्त शून्य में देखती, कभी अपने बच्चे में डूब जाती।
उर्मिला एक बार फिर अपने अन्दर की स्त्री के स्थान पर प्रेमिका के रूप में सोचती है और रिपुदमन को रुकने के लिए बाध्य नहीं करती।
रिपुदमन द्वारा आत्महत्या करना तथा उनका पत्र मिलना
👉जिस दिन दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रस्थान करना था। उस दिन उर्मिला ने अखबार में पढ़ा-राजा रिपुदमन सवेरे खून में भरे पाए गए। गोली का कनपटी के आर-पार निशान है। अखबार में विवरण एवं विस्तार के साथ उनसे सम्बन्धित अनेक सूचनाएँ थीं। जिन्हें उर्मिला ने अक्षर-अक्षर सब पढ़ा। आत्महत्या से पूर्व उन्होंने एक पत्र लिखा था। जो मृत व्यक्ति (रिपुदमन) के तकिये के नीचे से मिला था।
राजा ने अपने पत्र में लिखा कि "दक्षिणी ध्रुव जाने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी वे जाना चाहते थे, क्योंकि इस बार उन्हें वापस नहीं लौटना था। लोगों ने इसे मेरा पराक्रम समझा, लेकिन यह छलावा है, क्योंकि इसका श्रेय मुझे नहीं मिलना चाहिए। ध्रुव पर जाने पर भी मैं नहीं बचता या फिर नहीं लौटता और आत्महत्या करके भी नहीं लौटूंगा। मैं अपने होशोहवास में अपना जीवन समाप्त करके किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के लिए मेरी आत्मा की रक्षा करे।"
Write by vivek kumar